Answer:
Step-by-step explanation:
y + 1 = -9(x + 9)
y + 1 = -9x - 81
y = -9x - 82
answer is A
Answer:
No, not a probability distribution.
Step-by-step explanation:
It appears that one of the probabilities in the table (-.3) is negative, which is not allowed.
Answer:
Y = 5
X= 6
Step-by-step explanation:
I just solved it by my mind you just check it
Answer:
vertex: (2,-18)
Step-by-step explanation:
y = ax² + bx + c
(-1,0) : a - b + c = 0 ...(1)
(5,0) : 25a +5b +c = 0 ...(2)
(0,-10): 0a + 0b + c = -10 c=-10
(1) x5: 5a - 5b + 5c = 0 ...(3)
(2)+(3): 30a + 6c = 0 30a = -6c = 60 a = 2
(1): 2 - b -10 = 0 b = -8
Equation: y = 2x² - 8x -10 = 2 (x² -4x +4) - 18 = 2(x-2)² -18
equation: y = a(x-h)²+k (h,k): vertex
vertex: (2,-18)
Answer:
hope it helps
please mark me brainliest
Step-by-step explanation:
वात्सल्य रस का स्थायी भाव है। माता-पिता का अपने पुत्रादि पर जो नैसर्गिक स्नेह होता है, उसे ‘वात्सल्य’ कहते हैं। मैकडुगल आदि मनस्तत्त्वविदों ने वात्सल्य को प्रधान, मौलिक भावों में परिगणित किया है, व्यावहारिक अनुभव भी यह बताता है कि अपत्य-स्नेह दाम्पत्य रस से थोड़ी ही कम प्रभविष्णुतावाला मनोभाव है।
संस्कृत के प्राचीन आचार्यों ने देवादिविषयक रति को केवल ‘भाव’ ठहराया है तथा वात्सल्य को इसी प्रकार की ‘रति’ माना है, जो स्थायी भाव के तुल्य, उनकी दृष्टि में चवर्णीय नहीं है[1]।
सोमेश्वर भक्ति एवं वात्सल्य को ‘रति’ के ही विशेष रूप मानते हैं - ‘स्नेहो भक्तिर्वात्सल्यमिति रतेरेव विशेष:’, लेकिन अपत्य-स्नेह की उत्कटता, आस्वादनीयता, पुरुषार्थोपयोगिता इत्यादि गुणों पर विचार करने से प्रतीत होता है कि वात्सल्य एक स्वतंत्र प्रधान भाव है, जो स्थायी ही समझा जाना चाहिए।
भोज इत्यादि कतिपय आचार्यों ने इसकी सत्ता का प्राधान्य स्वीकार किया है।
विश्वनाथ ने प्रस्फुट चमत्कार के कारण वत्सल रस का स्वतंत्र अस्तित्व निरूपित कर ‘वत्सलता-स्नेह’ [2] को इसका स्थायी भाव स्पष्ट रूप से माना है - ‘स्थायी वत्सलता-स्नेह: पुत्राथालम्बनं मतम्’।[3]
हर्ष, गर्व, आवेग, अनिष्ट की आशंका इत्यादि वात्सल्य के व्यभिचारी भाव हैं।